एक सुखी बचपन को तो कभी भी हासिल किया जा सकता है । कहने का मतलब केवल इतना ही है कि आप किसी भी वक़्त अपनी ज़िंदगी की नाखुश कर देने वाली घटनाओं को सकारात्मक नज़रिए से देख सकते हैं।
आप प्रतिस्थापन के नियम का अभ्यास कर सकते हैं और उन नकारात्मक अनुभवों से भी कुछ हासिल कर सकते हैं ।
महज़ उन घटनाओं पर ही सोचने रहने की बजाय आप सोच सकते हैं कि उन घटनाओं ने आपको कैसे ज़्यादा बुद्धिमान और बेहतर बना दिया है ।आप दरअसल गुज़रे हुए वक़्त मै आपको नुक़सान पहुंचाने वाले लोगों के शुक्रगुजार हो सकते हैं कि उन्होने आपको आज कितना सशक्त बना दिया।
और किसी भी परिस्थिति में, ऐसा किसी अन्य तरीक़े से संभव नहीं था।
आपके माता - पिता को बच्चे पालने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था । इसके अलावा उनकी जानकारी उनके खुद के पालन पोषण की प्रक्रिया तक ही सीमित थी । हर इंसान की तरह ,एक मां या पिता की जिम्मेदारी जब उनको मिली तो उसमें उनकी निजी समस्याएं और कमजोरियां भी छिपी हुई थी , जैसा की आज आपके साथ हो रहा है । फिर भी ,उन्होने उनके पास जो था उसके लिहाज़ से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया। वे जैसे भी थे ,उन्होने आपका उसी तरह से पालन पोषण किया ,जैसा कि वे कर सकते थे । ऐसे में ऐसी किसी भी बात को लेकर ना ख़ुश होने की जरूरत नहीं है, जो उन्होने नहीं की या कि जिनको करने से वे काबिल नहीं थे । उससे भूल जाओ और अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाओ ।
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